होम / श्राद्ध में करे पितरों का तर्पण…!!

श्राद्ध में करे पितरों का तर्पण…!!

Naveen Sharma • LAST UPDATED : September 9, 2022, 8:52 am IST

इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली: श्राद्ध (Shradh) प्राचीन भारतीय संस्कृति का अंग है। श्राद्ध यानी श्रद्धा से किया गया कार्य। पितरों के लिए श्रद्धा से किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहते हैं तथा तृप्त करने की क्रिया और देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।

तर्पण करना ही पिंडदान करना है। पितृ पक्ष 10 सितंबर को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ हो रहा है। वह इसका समापन 25 सितंबर को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर होगा। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर – जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है।

राजा दशरथ के निधन का समाचार मिलने पर भगवान राम ने वनवास में रहते हुए भी पिता का श्राद्ध किया था। श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है।

वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है। इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है।

श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं। धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है।

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि भाद्रपद की पूर्णिमा एवं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय पितृ पक्ष कहलाता है। इस पक्ष में मृत पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है। पितृ पक्ष में पितरों की मरण-तिथि को ही उनका श्राद्ध किया जाता है। सर्वपितृ अमावस्या को कुल के उन लोगों का श्राद्ध किया जाता हैं

जिन्हें हम नहीं जानते हैं। इसके अलावा, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन में पितरों को याद किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन में तीन ऋण मुख्य है। ये हैं ‘देव ऋण’, ‘ऋषि ऋण’, और ‘पितृ ऋण’। इनमें से देव ऋण यज्ञादि द्वारा, ऋषि ऋण स्वाध्याय और पितृ ऋण को श्राद्ध द्वारा उतारा जाता है।

इस ऋण का उतारा जाना जरूरी होता है क्योंकि जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया, हमारी उम्र, आरोग्य और सुख-समृद्धि के लिए कार्य और तकलीफें उठाईं उनके ऋण से मुक्त हुए बगैर हमारा जन्म निरर्थक है। पितृ पक्ष में जब सूर्य कन्या राशि में होता है,

तब पितृ लोक से पृथ्वी पर पितर इस आशा के साथ आते हैं कि उनके पुत्र-पौत्र उन्हें पिंडदान कर संतुष्ट करेंगे। ऐसा न होने पर अतृप्त इच्छा लेकर लौटे पितर दुष्ट या बुरी शक्तियों के अधीन हो जाते हैं, जिसके चलते बुरी शक्तियों द्वारा पितरों के माध्यम से परिवारजनों को कष्ट देने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं।

इसके चलते घर में कलह, झगड़े, पैसे का न रुकना, नौकरी का अभाव, गंभीर बीमारी, हालात अनुकूल होने के बाद भी शादी का न होना या टूटना, बच्चे न होना, या विकलांग बच्चों का होना आदि परेशानियां होने लगती हैं।लेकिन पितृपक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध करने से उनकी अतृप्त इच्छाओं के पूर्ण होने से, उनकी मुक्ति के साथ ही परिवारजनों को भी उनकी तकलीफों से मुक्ति मिल जाती है।

विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पितृ पक्ष में मृत व्यक्ति की जो तिथि होती है, उसी दिन श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध केवल पिता ही नहीं बल्कि अपने पूर्वजों का भी किया जाता है। जब कोई आपका अपना शरीर छोड़कर चला जाता है तब उसके सारे क्रियाकर्म करना जरूरी होता है,

क्योंकि ये क्रियाकर्म ही उक्त आत्मा को आत्मिक बल देते हैं और वह इससे संतुष्ट होती है। प्रत्येक आत्मा को भोजन, पानी और मन की शांति की जरूरत होती है और उसकी यह पूर्ति सिर्फ उसके परिजन ही कर सकते हैं। परिजनों से ही वह आशा करती है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे।

इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं। यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है।अन्य कई कार्य भी श्रद्धापूर्वक किए जाते हैं। लेकिन यहां श्राद्ध का तात्पर्य पितृ पक्ष (अश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक) में पितरों के निमित्त किए जाने वाले तर्पण और पिंडदान से है।

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किंतु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।पितृ पक्ष आने पर जोगे की पत्नी ने उससे पितरों का श्राद्ध करने के लिए कहा

तो जोगे इसे व्यर्थ का कार्य समझकर टालने की चेष्टा करने लगा, किंतु उसकी पत्नी समझती थी कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो लोग बातें बनाएंगे। फिर उसे अपने मायके वालों को दावत पर बुलाने और अपनी शान दिखाने का यह उचित अवसर लगा।

अतः वह बोली- ‘आप शायद मेरी परेशानी की वजह से ऐसा कह रहे हैं, किंतु इसमें मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। मैं भोगे की पत्नी को बुला लूंगी। दोनों मिलकर सारा काम कर लेंगी।’ फिर उसने जोगे को अपने पीहर न्यौता देने के लिए भेज दिया। दूसरे दिन उसके बुलाने पर भोगे की पत्नी सुबह-सवेरे आकर काम में जुट गई।

उसने रसोई तैयार की। अनेक पकवान बनाए फिर सभी काम निपटाकर अपने घर आ गई। आखिर उसे भी तो पितरों का श्राद्ध-तर्पण करना था। इस अवसर पर न जोगे की पत्नी ने उसे रोका, न वह रुकी। शीघ्र ही दोपहर हो गई। पितर भूमि पर उतरे। जोगे-भोगे के पितर पहले जोगे के यहां गए तो क्या देखते हैं कि उसके ससुराल वाले वहां भोजन पर जुटे हुए हैं।

निराश होकर वे भोगे के यहां गए। वहां क्या था? मात्र पितरों के नाम पर ‘अगियारी’ दे दी गई थी। पितरों ने उसकी राख चाटी और भूखे ही नदी के तट पर जा पहुंचे। थोड़ी देर में सारे पितर इकट्ठे हो गए और अपने-अपने यहां के श्राद्धों की बढ़ाई करने लगे। जोगे-भोगे के पितरों ने भी अपनी आपबीती सुनाई।

फिर वे सोचने लगे- अगर भोगे समर्थ होता तो शायद उन्हें भूखा न रहना पड़ता, मगर भोगे के घर में तो दो जून की रोटी भी खाने को नहीं थी। यही सब सोचकर उन्हें भोगे पर दया आ गई। अचानक वे नाच-नाचकर गाने लगे- ‘भोगे के घर धन हो जाए। भोगे के घर धन हो जाए।’ सांझ होने को हुई। भोगे के बच्चों को कुछ भी खाने को नहीं मिला था।

उन्होंने मां से कहा- भूख लगी है। तब उन्हें टालने की गरज से भोगे की पत्नी ने कहा- ‘जाओ! आंगन में हौदी औंधी रखी है, उसे जाकर खोल लो और जो कुछ मिले, बांटकर खा लेना।’ बच्चे वहां पहुंचे, तो क्या देखते हैं कि हौदी मोहरों से भरी पड़ी है। वे दौड़े-दौड़े मां के पास पहुंचे और उसे सारी बातें बताईं।

आंगन में आकर भोगे की पत्नी ने यह सब कुछ देखा तो वह भी हैरान रह गई। इस प्रकार भोगे भी धनी हो गया, मगर धन पाकर वह घमंडी नहीं हुआ। दूसरे साल का पितृ पक्ष आया। श्राद्ध के दिन भोगे की स्त्री ने छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाएं। ब्राह्मणों को बुलाकर श्राद्ध किया। भोजन कराया, दक्षिणा दी। जेठ-जेठानी को सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन कराया। इससे पितर बड़े प्रसन्न तथा तृप्त हुए।

पितृ पक्ष में Shradh की तिथियां

विश्वविख्यात भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास बता रहे है कब है कौनसा श्राद्ध (Shradh)

  • पूर्णिमा श्राद्ध – प्रतिपदा श्राद्ध – 10 सितंबर
  • द्वितीय श्राद्ध – 11 सितंबर
  • तृतीया श्राद्ध – 12 सितंबर
  • चतुर्थी श्राद्ध – 13 सितंबर
  • पंचमी श्राद्ध – 14 सितंबर
  • षष्ठी श्राद्ध – 15 सितंबर
  • सप्तमी श्राद्ध – 16 सितंबर
  • अष्टमी श्राद्ध – 18 सितंबर
  • नवमी श्राद्ध – 19 सितंबर
  • दशमी श्राद्ध – 20 सितंबर
  • एकादशी श्राद्ध – 21 सितंबर
  • द्वादशी श्राद्ध – 22 सितंबर
  • त्रयोदशी श्राद्ध – 23 सितंबर
  • चतुर्दशी श्राद्ध – 24 सितंबर
  • अमावस्या श्राद्ध – 25 सितंबर
  • मातामह या नाना श्राद्ध- 26 सितंबर

इस साल 17 सितंबर को श्राद्ध तिथि नहीं है।

इन वस्तुओ का करे दान

  • गाय का दान- धार्मिक दृष्टि से गाय का दान सभी दानों में श्रेष्ठ माना जाता है, लेकिन श्राद्ध पक्ष में किया गया गाय का दान हर सुख और धन-संपत्ति देने वाला माना गया है।
  • तिल का दान- श्राद्ध के हर कर्म में तिल का महत्व है। इसी तरह श्राद्ध में दान की दृष्टि से काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।
  • घी का दान- श्राद्ध में गाय का घी एक पात्र (बर्तन) में रखकर दान करना परिवार के लिए शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
  • अनाज का दान- अन्नदान में गेहूं, चावल का दान करना चाहिए। इनके अभाव में कोई दूसरा अनाज भी दान किया जा सकता है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।
  • भूमि दान- अगर आप आर्थिक रूप से संपन्न हैं तो श्राद्ध पक्ष में किसी कमजोर या गरीब व्यक्ति को भूमि का दान आपको संपत्ति और संतान लाभ देता है। किंतु अगर यह संभव न हो तो भूमि के स्थान पर मिट्टी के कुछ ढेले दान करने के लिए थाली में रखकर किसी ब्राह्मण को दान कर सकते हैं।
  • वस्त्रों का दान- इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। यह वस्त्र नए और स्वच्छ होना चाहिए।
  • सोने का दान- सोने का दान कलह का नाश करता है। किंतु अगर सोने का दान संभव न हो तो सोने के दान के निमित्त यथाशक्ति धन दान भी कर सकते हैं।
  • चांदी का दान- पितरों के आशीर्वाद और संतुष्टि के लिए चांदी का दान बहुत प्रभावकारी माना गया है।
  • गुड़ का दान- गुड़ का दान पूर्वजों के आशीर्वाद से कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।
  • नमक का दान- पितरों की प्रसन्नता के लिए नमक का दान बहुत महत्व रखता है।

ये भी पढ़े : एक हफ्ते में तीसरी घटना : जम्मू में स्टेज पर डांस करते समय हार्ट अटैक से आर्टिस्ट की मौत

हमें Google News पर फॉलो करे- क्लिक करे !

Connect With Us : Twitter | Facebook Youtube

Tags:

Get Current Updates on News India, India News, News India sports, News India Health along with News India Entertainment, India Lok Sabha Election and Headlines from India and around the world.

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

Lok Sabha Election 2024: ‘उद्धव ठाकरे नहीं देंगे जवाब क्योंकि वह डरे हुए हैं…’ अमित शाह ने लगाया बड़ा आरोप -India News
India-Canada Row: कनाडा की राजनीति को प्रभावित करने में भारत की भूमिका, जांच ने किया इस ओर इशारा -India News
Congo Bomb Blast: कांगो में विस्थापन शिविरों पर बम हमला, बच्चों समेत कम से कम 12 लोगों की मौत -India News
Somnath Bharti Resigns: AAP नेता सोमनाथ भारती ने दिया कई पदों से इस्तीफा, बोले- ‘मुझे खुशी है कि…’ -India News
US-Jordan Relations: जो बिडेन गाजा वार्ता के बीच जॉर्डन किंग की करेंगे मेजबानी, व्हाइट हाउस ने किया खुलासा -India News
Rohith Vemula Case: रोहित वेमुला दलित नहीं…, परिवार पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को देगा चुनौती- Indianews
Samsung Galaxy S23 FE पर मिल रहा भारी डिस्काउंट, जल्दी करें ऑर्डर, ​कहीं हाथ से न निकल जाए डील-Indianews
ADVERTISEMENT