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इलेक्ट्रिक टू व्हीलर से निकल सकती है भारत के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर भविष्य की राह

Mehak Jain • LAST UPDATED : August 13, 2022, 4:45 pm IST

Highlights

  • टेरी के श्री आई. वी. राव ने कहा, दोपहिया के क्षेत्र में तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने से पेट्रोल की मांग पर उल्लेखनीय असर पड़ सकता है। निश्चित तौर पर इससे आयात निर्भरता और उत्सर्जन भी कम होगा
  • आईसीसीटी की शिखा रोकड़िया ने कहा कि 2035 तक नए बिकने वाले 100 प्रतिशत दोपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक कर लिया जाए तो इससे 500 मिलियन टन के बराबर (एमटीओई) पेट्रोल की मांग कम हो सकती है

इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली : भारत दुनिया का सबसे बड़ा दोपहिया वाहन बाजार है। इंटरनेशनल काउंसिल फॉर क्लीन ट्रांसपोर्टेशन के इंडिया एमिशन मॉडल के अनुमानों के मुताबिक 2021 में सड़क परिवहन में हुई कुल पेट्रोल की खपत का 70% और पेट्रोलियम की खपत का 25%, दोपहिया वाहनों से हुआ था। अगर हम पेट्रोल से चलने वाले दोपहिया वाहनों को ही बढ़ाते रहे तो 2050 तक भारत में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता दोगुने से भी ज्यादा हो जाएगी।

पिछले कुछ वर्षों में भारत में इलेक्ट्रिक टू व्हीलर्स की मांग बढ़ने से ई-मोबिलिटी की तरफ कदम बढ़ाने के देश के प्रयासों को गति मिली है। नीति आयोग और टेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन, फोरकास्टिंग एंड असेसमेंट काउंसिल (टीआईएफएसी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2026-27 तक भारत में 100 प्रतिशत दोपहिया इलेक्ट्रिक हो जाने की संभावना है।

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टेरी) और इंटरनेशनल काउंसिल फॉर क्लीन ट्रांसपोर्टेशन (आईसीसीटी) के विशेषज्ञों ने वाहनों के इलेक्ट्रिक होने और इससे तेल आयात पर भारत की निर्भरता कम होने व देश के लिए ऊर्जा के क्षेत्र में निर्भर और आत्मनिर्भर भविष्य निर्माण की राह निकलने की संभावनाओं पर अपने विचार रखे हैं।

टेरी के सीनियर विजिटिंग फेलो श्री आई. वी. राव ने कहा

भारत में दोपहिया को हमेशा से वाहनों की श्रेणी में अहम माना गया है, जहां अन्य किसी भी सेगमेंट की तुलना में ईवी की ओर ज्यादा तेजी से बढ़ सकते हैं। इसके कई कारण हैं, जैसे इसके लिए सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशन पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, फेम 2 और राज्यों के इंसेंटिव के कारण तुलनात्मक रूप से इनकी कीमत कम होती है, उपभोक्ताओं की परचेजिंग पावर बढ़ रही है और इसके परिचालन की लागत बहुत कम है।

इस सेगमेंट की वृद्धि में इस सेक्टर में कदम रख रही नई कंपनियों का भी योगदान है, जो टेक्नोलॉजी आधारित व उपभोक्ता को ध्यान में रखकर समाधान पेश करने पर फोकस कर रही हैं। दोपहिया के मामले में तेजी से ईवी की ओर कदम बढ़ने से पेट्रोल की मांग पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, जिससे निश्चित तौर पर आयात पर निर्भरता एवं उत्सर्जन कम होगा। इस सेगमेंट में ज्यादा ईवी के होने से उपभोक्ता का खर्च कम होने के साथ-साथ पर्यावरण एवं वायु की गुणवत्ता पर भी उल्लेखनीय सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।’

आईसीसीटी की रिसर्चर (कंसल्टेंट) शिखा रोकड़िया ने कहा 

2035 तक नए बिकने वाले 100 प्रतिशत दोपहिया वाहनों को इलेक्ट्रिक कर लिया जाए, तो भारत में 2020 से 2050 के बीच पेट्रोल की मांग में 500 मिलियन टन (एमटीओई) से ज्यादा और इससे संबंधित लागत में 740 अरब डॉलर से ज्यादा की कमी आ सकती है। प्रदूषण के लिहाज से देखें तो भारत ने पिछले दशक में बीएस-6 उत्सर्जन मानक अपनाने समेत नीतिगत मोर्चे पर कुछ अहम कदम उठाए हैं।

इससे वायु प्रदूषण में होने वाली वृद्धि को काफी हद तक कम किया जा सका है। हालांकि इस तरह के मानकों को अपनाने के बाद भी सड़क पर लगातार बढ़ती संख्या के कारण दोपहिया वाहनों से होने वाला पीएम और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन लगातार बढ़ता रहेगा। इसे देखते हुए उत्सर्जन को शून्य के नजदीक लाने के लिए दोपहिया वाहनों को बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक करना लागत की दृष्टि से सबसे किफायती तरीका है।‘

भारत आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, ऐसे में आने वाले वर्षों में परिवहन क्षेत्र के कारण होने वाले कार्बन उत्सर्जन को खत्म करने और नेट जीरो के लक्ष्य को पाने की दिशा में बड़े पैमाने पर वाहनों को इलेक्ट्रिक करना महत्वपूर्ण होगा। ई-मोबिलिटी को अपनाने से तेल आयात कम करने, वायु गुणवत्ता सुधारने और जलवायु परिवर्तन पर लगाम के कदमों को सहयोग देने जैसे कई अन्य राष्ट्रीय लक्ष्य प्राप्त करने में भी सहायता मिलेगी। इतना ही नहीं, इससे तेजी से बदलते वैश्विक बाजार में भारत की औद्योगिक प्रतिस्पर्धी क्षमता भी बढ़ेगी।

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