नई दिल्ली (Supreme court): सुप्रीम कोर्ट ने 1985 के हत्या के मामले में संदेह के तहत सजा काट रहे दो लोगों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। न्यायालय ने मामले में उनकी दोषसिद्धि की पुष्टि करने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने 29 जनवरी, 1986 को निचली अदालत के फैसले और 9 जुलाई, 2014 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत की राय है कि अपीलकर्ता ने नारायण की हत्या का आरोप संदेह के आधार पर साबित नहीं किया जा सकता है, इसलिए वे संदेह के लाभ के हकदार थे। अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट के 29 जनवरी 1986 के निर्णय में निहित दोषसिद्धि और सजा के आदेश को खारिज कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 9 जुलाई 2014 को पारित निर्णय और आदेश, दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखते हुए, अलग रखा जाता है।
अदालत का कहना है कि अपीलकर्ता को अपीलीय निर्णय और आदेश दिए जाने के बाद से सुधार गृह में बंद किया गया है। अगर अपीलकर्ता किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो उसे तुरंत रिहा कर दिया जाएगा। बता दें कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा 29 जनवरी 1986 को दो व्यक्तियों मुन्ना और शिव लाल को हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया था, जिसकी पुष्टि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 9 जुलाई, 2014 को की थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दोनों लोगों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने कहा कि जांच प्रक्रिया में मात्र दोष ही बरी होने का आधार नहीं हो सकता है, यह न्यायालय का कानूनी दायित्व है कि वह प्रत्येक मामले की जांच करे कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य जांच अधिकारी द्वारा की गई खामियों को दूर करते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि सबूत रिकॉर्ड पर लाए गए हैं या नहीं।