इंडिया न्यूज, New Delhi News। Hearing In SC on BCCI’s Appeal : बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से भारतीय क्रिकेट बोर्ड की याचिका को स्वीकार कर लिया गया है। जिसमें पदाधिकारियों के अनिवार्य कूलिंग ऑफ पीरियड और कार्यकाल पर अपने संविधान में संशोधन करने की अनुमति प्रदान करने की गुहार लगाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हमारा विचार है कि बीसीसीआइ की ओर से अपने संविधान में किया गया संशोधन खेल की मूल उद्देश्य को कमजोर नहीं करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से बीसीसीआइ अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह को बड़ी राहत मिली है। दोनों ही अगले 3 साल तक बीसीसीआइ में अपने पद पर बरकरार रह सकते हैं।
बीसीसीआइ ने अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह का कार्यकाल बढ़ाने के लिए उन्हें कूलिंग आॅफ पीरियड से छूट देने की अपील की थी। इसके लिए बीसीसीआइ के संविधान में संशोधन की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा-बीसीसीआई की ओर से प्रस्तावित संशोधन हमारे निर्णय की भावना से अलग नहीं हैं। अदालत बीसीसीआइ की अपील स्वीकार करती है।
बता दें कि बीसीसीआइ के मौजूदा नियम कहते हैं कि राज्य क्रिकेट बोर्ड या बीसीसीआई में 6 साल तक पद पर रहने के बाद दूसरा पद हासिल करने से पहले 3 साल का कूलिंग आफ पीरियड का पालन करना होगा। इस मसले पर सर्वोच्च अदालत ने मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बीसीसीआइ से पूछा कि वह क्यों ऐसा चाहता है कि 70 साल से अधिक उम्र का व्यक्ति अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) में उसका प्रतिनिधित्व करे।
वहीं शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी बोर्ड की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान की जिसमें उसके अध्यक्ष सौरव गांगुली और सचिव जय शाह सहित अन्य पदाधिकारियों के कार्यकाल के संबंध में अपने संविधान में संशोधन करने की मांग की गई थी। इसमें राज्य क्रिकेट संघों और बीसीसीआइ के पदाधिकारियों के कार्यकाल के बीच अनिवार्य ‘कूलिंग-आफ’ अवधि (तीन साल तक कोई पद नहीं संभालना) को समाप्त करना शामिल है।
बीसीसीआइ की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलीलों में कहा था कि राज्य क्रिकेट बोर्ड और बीसीसीआइ दोनों निकाय अलग हैं और उनके नियम भी अलग हैं और जमीनी स्तर पर नेतृत्व तैयार करने के लिए पदाधिकारी के लगातार दो कार्यकाल बहुत कम हैं। इससे पहले न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अगुआई वाली समिति ने बीसीसीआइ में संशोधनों की सिफारिश की थी जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया था।
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