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The Kashmir Files Movie Analysis जानिए क्यों चर्चा का विषय बनी हुई है द कश्मीर फाइल्स

Sameer Saini • LAST UPDATED : March 19, 2022, 5:27 pm IST

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The Kashmir Files Movie Analysis

राजीव रंजन तिवारी, नई दिल्ली :

The Kashmir Files Movie Analysis : ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने हलचल मचा रखी है। चारो तरफ इसकी चर्चा है। यह एक मुवी है, पर अफसोस कि इसे मुवी की तरह से नहीं देखा जा रहा है। इस फिल्म को लोग पूरी गंभीरता से देख रहे हैं और दिल से दिल पर ले रहे हैं। यह ठीक बात नहीं है। यह सबको पता है मुवी को मनोरंजन के लिए बनाया जाता है, न कि उसे दिल पर विवाद खड़ा करने के लिए। ‘द कश्मीर फाइल्स’ के साथ कुछ एसा ही हो रहा है।

खासकर देश के राजनेता इस पर खूब चर्चा कर रहे हैं। चाहे वह सत्ताधारी दल हो या विपक्ष, हर तरफ ‘द कश्मीर फाइल्स’ की चर्चा देखने और सुनने को मिल रही है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहेंगे कि इस फिल्म को देखने वाले लोग मनोरंजन करने के बजाय गंभीर हो जा रहे हैं। जबकि सच्चाई क्या है, यह तो कश्मीर की जनता ही जानती है। हालांकि कुछ नेता इस पर अपने विचार रख रहे हैं और यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ की हकीकत क्या है।

नेशनल कॉफ्रेंस ने फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि फिल्म सच से बहुत दूर है क्योंकि फिल्म निर्माताओं ने आतंकवाद से पीड़ित मुसलमानों और सिखों के संघर्ष को नजरअंदाज किया है। पार्टी के उपाध्यक्ष और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक व्यावसायिक फिल्म होती, तो किसी को कोई समस्या नहीं थी लेकिन अगर फिल्म निर्माता दावा करते हैं कि यह वास्तविकता पर आधारित है, तो सच्चाई इससे अलग है। अब्दुल्ला ने कहा कि जब कश्मीरी पंडितों के पलायन की दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, तब फारूक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री नहीं थे। जगमोहन राज्यपाल थे।

केंद्र में वीपी सिंह की सरकार थी, जिसे भाजपा ने बाहर से समर्थन दिया हुआ था। उमर ने आश्चर्य जताया कि इस तथ्य को फिल्म से दूर क्यों रखा गया है। उन्होंने कहा कि सच्चाई से छेड़छाड़ नहीं करें। यह सही चीज नहीं है। उमर ने कहा कि अगर कश्मीरी पंडित आतंकवाद के शिकार हुए हैं तो हमें इसके लिए बेहद खेद है। हालांकि, हमें उन मुसलमानों और सिखों के संघर्ष को भी नहीं भूलना चाहिए, जिन्हें उसी बंदूक से निशाना बनाया गया था। उमर ने कहा कि बहुसंख्यक समुदाय के कुछ लोगों का अभी वापस आना बाकी है। उन्होंने कहा कि आज एक ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है जहां हम उन सभी को वापस ला सकें, जिन्होंने अपना घर छोड़ दिया था।

उधर, सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर कश्मीर पर ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म बनाई जा सकती है, तो लखीमपुर खीरी हिंसा पर ‘लखीमपुर फाइल्स’ भी बनाए जाने की जरूरत है। सपा अध्यक्ष ने कहा कि आप पड़ोसी जिले से हैं, अगर ‘कश्मीर फाइल्स’ फिल्म बनती है तो कम से कम लखीमपुर फाइल्स फिल्म बननी चाहिए जहां किसानों को जीप के पहियों के नीचे कुचल दिया गया था। गौरतलब है कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन के दौरान तीन अक्टूबर, 2021 को लखीमपुर खीरी में हिंसा भड़क गयी थी और जीप जो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे की बतायी जाती है, से कुचल कर चार किसान मारे गए थे।

विपक्षी दलों ने इस घटना की पारदर्शी और निष्पक्ष जांच के लिए मिश्रा के इस्तीफे की भी मांग की थी। इस दौरान अखिलेश यादव ने हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों के नतीजों का जिक्र करते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी ने ‘नैतिक जीत’ हासिल की है और समाजवादी पार्टी बढ़ रही है, जबकि भाजपा घट रही है। इन चुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा ने 403 में से 255 सीटें जीती है, वहीं समाजवादी पार्टी को 111 सीटें मिली हैं।

वहीं दूसरी तरफ ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म देखने के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया है कि भाजपा के सहयोग से चलने वाली केंद्र सरकार ने उस वक्त नरसंहार को रोकने की कोशिश नहीं की थी। सीएम बघेल ने अपने सभी विधायकों को भी फिल्म देखने के लिए आमंत्रित किया था। बघेल ने कहा कि इस नरसंहार में न केवल हिंदू बल्कि वे सभी लोग मारे गए थे जो कि भारत के साथ खड़े थे। इनमें सिख, मुस्लिम, बौद्ध और अन्य वर्ग के लोग भी शामिल थे। बघेल उन कांग्रेसी नेताओं में से हैं जिन्होंने कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर आधारित फिल्म देखी।

Film The Kashmir Files
The Kashmir Files

बघेल ने कहा कि फिल्म में दिखाया गया है कि भाजपा के सहयोग से चलने वाली वाली सरकार ने कश्मीरी पंडितों को रोकने का प्रयास नहीं किया। बल्कि उनसे भाग जाने को कहा गया। वहां कोई सेना नहीं भेजी गई। जब लोकसभा में राजीव गांधी ने घेरा तो वहां सेना भेजी गई। उन्होंने कहा कि फिल्म में आधा सच दिखाया गया है। केवल समस्या दिखायी गई है, उसका समाधान नहीं बताया गया। उन्होंने कहा, फिल्म आधी अधूरी है, कोई समाधान नहीं बताया गया। जिस फिल्म में कोई संदेश नहीं दिखाया गया, केवल हिंसा दिखायी गई है। मैं नहीं समझता कि इसका कोई औचित्य है।

बहरहाल, जबसे केंद्र सरकार से जुड़े बड़े नेताओं ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ की तारीफ करने शुरू की है, तबसे इस फिल्म पर कुछ ज्यादा ही बहस छिड़ गई है। स्वाभाविक है प्रतिक्रिया स्वरूप विपक्षी भी मैदान में कूद गए हैं। खैर, देखते हैं फिल्म को लेकर छिड़ी बहस कहां जाकर ठहरती है।

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