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हिजाब विवाद: सीएम इब्राहिम ने साड़ी के पल्लू से की इस्लामी हिजाब की तुलना, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का दिया उदाहरण

Naresh Kumar • LAST UPDATED : September 20, 2022, 7:32 pm IST

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इंडिया न्यूज, New Delhi News। Hijab Controversy: सुप्रीम कोर्ट में हिजाब को लेकर सुनवाई जारी है। इस बीच जनता दल के कर्नाटक प्रमुख सीएम इब्राहिम ने मंगलवार को एक नया लॉजिक पेश कर दिया। उन्होंने इस्लामी हिजाब की तुलना साड़ी के पल्लू से कर डाली। इब्राहिम ने यहां तक कह दिया कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी तो अपने सिर को पल्लू से ढंकती हैं। क्या यह भी पीएफआई की साजिश है।

पल्लू से सिर ढंकना भारत का इतिहास और संस्कार

इब्राहिम उस आरोप का जवाब दे रहे थे, जिसके मुताबिक कर्नाटक में हिजाब विवाद को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शनों के पीछे पीएफआई है। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी अपने सिर पर पल्लू रखती थीं। राष्ट्रपति अपने सिर पर पल्लू रखती हैं। तो क्या वह सभी जो घूंघट रखती हैं, उन्हें पीएफआई का समर्थन हासिल है। जेडीएस के कर्नाटक प्रमुख ने कहा कि पल्लू से अपना सिर ढंकना भारत का इतिहास है। यह भारत का संस्कार है।

2021 तक स्कूलों में हिजाब नहीं पहने जाते थे

बता दें कि कर्नाटक सरकार ने आज कोर्ट में जवाब देते हुए कहा कि हिजाब को लेकर हुए विरोधों के पीछे पीएफआई थी। इसमें यह भी दावा किया गया कि 2021 तक स्कूलों में हिजाब नहीं पहने जाते थे। कर्नाटक सरकार के 5 फरवरी, 2022 को जारी आदेश में स्कूल और कॉलेजों में हिजाब पहनने पर रोक लगा दी गई थी। इसके मुताबिक ऐसे पहनावे से समानता, एकता और जनमानस में अशांति फैल सकती है।

हिजाब और पल्लू में बताया भाषा का अंतर

सीएम इब्राहिम ने इस दौरान राजस्थान के पारंपरिक परिधानों की तरफ भी ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि राजस्थानी महिलाएं अपने सिर और चेहरों को पल्लू से ढकती हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थान में कोई भी राजपूत महिला अपना चेहरा खुला नहीं रखती। वह लंबा घूंघट रखती हैं। क्या आप इस पर प्रतिबंध लगा सकते हैं। क्या इसे भी मुस्लिम परिपाटी बता सकते हैं। जेडी-एस नेता ने कहा कि हिजाब और पल्लू में सिर्फ भाषा का अंतर है। हालांकि दोनों का काम एक ही है।

हिजाब मुसलमानों की पहचान

हिजाब बैन को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि हिजाब मुसलमानों की पहचान है। सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने सोमवार को कोर्ट में कहा था कि कर्नाटक में अधिकारियों के तमाम फैसले अल्पसंख्यक समुदाय हाशिए पर ला रहे हैं। अधिवक्ता दवे ने कहा कि धार्मिक प्रथा वही है जिसका समुदाय अपनी धार्मिक मान्यता के तौर पर पालन करता आ रहा है।

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