इंडिया न्यूज़ (दिल्ली):सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सितंबर 2017 में गुड़गांव के एक निजी स्कूल में एक सीनियर द्वारा कथित तौर पर हत्या कर दी गई दूसरी कक्षा के छात्र के पिता और मामले की जांच करने वाली सीबीआई द्वारा पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज कर दिया,इस याचिका में किशोर न्याय बोर्ड से इस पर नए सिरे से विचार करने को कहा कि क्या आरोपी पर वयस्क या किशोर के रूप में अपराध का मुकदमा चलाया जाना चाहिए.
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ नेहाई कोर्ट के 11 अक्टूबर, 2018 के आदेश को बरकरार रखा,जिसमें बोर्ड के “प्रारंभिक आकलन” को खारिज कर दिया गया था कि आरोपी को एक वयस्क के रूप में पेश किया जाना चाहिए,साथ ही अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (बच्चों की कोर्ट) के उस फैसले को भी जिसमे बोर्ड का फैसला कायम रखा गया था.
किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण)अधिनियम 2015 की धारा 15 की आवश्यकताओं पर विस्तार से बताते हुए,सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में बच्चे का मानसिक आईक्यू प्राप्त करने की एकमात्र कारेवाई की गई,इसके अलावा परिणामों को समझने की क्षमता और उन परिस्थितियों के संबंध में जिनमें कथित अपराध किया गया था,किसी भी मनोवैज्ञानिक से कोई रिपोर्ट नहीं मांगी गई.
शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष से भी सहमति जताई कि किशोर को उचित अवसर नहीं दिया गया और बोर्ड द्वारा जवाब दिए गए दस्तावेजों की प्रतियां उसके वकील को नहीं दी गईं.