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राजनीतिक, शादी, पूजा स्थलों के साथ-साथ विवादों तक पहुंच गया लाउडस्पीकर, जानिए कैसे

Amit Gupta • LAST UPDATED : April 29, 2022, 3:37 pm IST

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: लाउडस्पीकर का आविष्कार 20वीं सदी की शुरूआत में हुआ था। किसी समय राजनीतिक सभाओं में लगने वाला लाउडस्पीकर आज शादी, पूजा स्थलों के साथ-साथ विवादों तक पहुंच गया है। यहां तक कि रेडियो, फोन, टीवी, लैपटॉप के अंदर अपने अलग-अलग रूप में मौजूद है।

हालांकि ये बात सही है कि जब लाउडस्पीकर का आविष्कार नहीं हुआ था तब धार्मिक स्थलों पर धार्मिक क्रियाकलापों के लिए इसकी जरूरत भी महसूस नहीं की गई। तो चलिए आज के इस लेख में जानते हैं पहली बार कब हुआ लाउडस्पीकर का उपयोग। दुनिया का पहला लाउडस्पीकर कब बना, इसका काम क्या है।

दुनिया का पहला लाउडस्पीकर कब बना?

एक लाउडस्पीकर (या “स्पीकर”) एक विद्युत-ध्वनिक ऊर्जा परिवर्तित्र है, जो विद्युत संकेतों को ध्वनि में परिवर्तित करता है। स्पीकर विद्युत संकेतों के परिवर्तनों के अनुसार चलता है तथा वायु या जल के माध्यम से ध्वनि तरंगों का संचार करता है।

loudspeaker controversy and science

161 साल पहले जोहान फिलिप रीस ने टेलिफोन में इलेक्ट्रिकल लाउडस्पीकर लगाया था। ताकि टोन अच्छे से सुनाई पड़े। लेकिन टेलिफोन के आविष्कारक (फोटो में) एलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने 1876 में पहले इलेक्ट्रिक लाउडस्पीकर का पेटेंट करा लिया।

उसके बाद अर्नस्ट सिमेंस ने इसमें कई सुधार किए। जो आज भी लगातार होता चला आ रहा है। फिर ये स्पीकर लाउडस्पीकर बन गया। धातु के गोल गड्ढेनुमा आकृति, जिसके पतले हिस्से से आवाज निकलती है और चौड़े हिस्से से दूर-दूर तक फैल जाती है।

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लाउडस्पीकर का पहली बार इस्तेमाल कब हुआ?

1924 के आसपास पहली बार जनरल इलेक्ट्रिक के चेस्टर डब्ल्यू राइस और एटीएंडटी के एडवर्ड डब्ल्यू केलॉग ने मूविंग कॉइल ने लाउडस्पीकर का उपयोग रेडियो में किया था। 1943 में आल्टिक लैनसिंग ने डुपलेक्स ड्राइवर्स और 604 स्पीकर्स बनाए, जिन्हें ‘वॉयस आफ द थियेटर’ कहा जाता है। 1954 में एडगर विलचर ने एकॉस्टिक सस्पेंशन की खोज की। इसके बाद आप स्पीकर्स वाले म्यूजिक प्लेयर्स लेकर घूम सकते थे। 80 के दशक में बड़े कैसेट प्लेयर्स लेकर लोग घूमते थे। 90 के दशक में वही वॉकमैन में बदल गया।

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वहीं ब्रायन विंटर्स की एक किताब ”बिशप, मुल्ला, और स्मार्टफोन: डिजिटल युग में दो धर्मों की यात्रा” के मुताबिक दुनिया में पहली बार अजान के लिए लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिंगापुर की सुल्तान मस्जिद में किया गया था। ये करीब 1936 की बात है। तब वहां के अखबारों में खबरें छपी थीं कि लाउडस्पीकर से अजान की आवाज एक मील तक जा सकेगी।

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लाउडस्पीकर का काम क्या?

लाउडस्पीकर ऐसा यंत्र है, जिसका इस्तेमाल किसी भी प्रकार की ध्वनि को सुनने के लिए किया जाता है। ये विद्युत तरंगों यानी इलेक्ट्रिकल वेव्स को आवाज में बदलता है। जब लाउडस्पीकर किसी विद्युत तरंग को अलग-अलग फ्रिक्वेंसी में रिसीव करता है, तो उसे उसी तरह बदलता है। इसलिए आवाज कम-ज्यादा होती और सुनाई देती है। आवाज को एनालॉग या डिजिटल तरीके से सुन सकते हैं। एनालॉग यानी लाउडस्पीकर को सामान्य म्यूजिक सिस्टम से लगाकर सुन लें।

लाउडस्पीकर की क्वालिटी का कैसे पता चलता है?

लाउडस्पीकर से निकल निकलने वाली आवाज कितनी क्लियर है, यह निर्भर करता है कि उसे इलेक्ट्रिकल सिग्नल कैसे मिल रहे हैं। क्योंकि स्पीकर से जो आवाज निकलती है, उसे फ्रिक्वेंसी या एंप्लीट्यूड कहते हैं। फ्रिक्वेंसी बताती है कि निकलने वाली आवाज ऊंची थी या फिर नीची। इनसे पैदा होने वाले आवाज के दबाव से यह पता चलता है कि लाउडस्पीकर की गुणवत्ता कैसी है। जितनी स्पष्ट आवाज उतना ही शानदार लाउडस्पीकर।

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लाउडस्पीकर के अंदर आमतौर पर एक चुंबक होता है, जिसके चारों तरफ एक पतली जाली होती है। जैसे ही इलेक्ट्रिकल तरंगें चुंबक से टकराती हैं, वो वाइब्रेशन पैदा करता है। इस वाइब्रेशन से जाली हिलती है। जिसे एमप्लीफाई करके आवाज बाहर की ओर भेज दिया जाता है।

लाउडस्पीकर की उपयोग क्या है?

आपको बता दें कि दूर तक आवाज पहुंचा और स्पष्ट तरीके से आवाज को सुना जा सके इसके लिए लाउडस्पीकर का उपयोग किया जाता है। कई बार आवाज की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए भी लाउडस्पीकर का उपयोग किया जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं। इटर्नल स्पीकर जैसे मोबाइल या लैपटॉप में मौजूद। बाहरी स्पीकर जैसे वूफर्स, साउंड बार आदि।

कानूनी पक्ष

दुनिया में कई देशों में अजान की सीमाएं तय की गई हैं। इनमें निदरलैंड, जर्मनी, स्वित्जरलैंड, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम, आस्ट्रिया, नॉर्वे और बेल्जियम जैसे देश शामिल हैं। लाओस और नाइजीरिया जैसे देशों ने स्वघोषित रूप से भी अजान की या तो सीमाएं तय की हैं या फिर प्रतिबंधित किया है।

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लाउडस्पीकर को लेकर क्या बने थे नियम

1998 में कोलकाता उच्च न्यायालय ने नियम दिया था 10 डेसिबिल से ज्यादा की आवाज के साथ कोई भी व्यक्ति या संस्था बगैर अनुमति के लाउडस्पीकर से ध्वनि प्रदूषण नहीं कर सकता। इसके बाद सन 2000 में चर्च आॅफ गॉड बनाम केकेआर मैजिस्टिक के तहत एक फैसला आया। इसमें रात को 10 बजे के बाद से लेकर सुबह 6 बजे तक कोई भी ध्वनि प्रदूषण न करने का आदेश दिया गया था।

इसके अलावा विशेष परिस्थितियों में सेक्शन 5 के तहत जिम्मेदार अधिकारी से अनुमति लेने के बाद ही रात 10 बजे से रात को 12 बजे तक एक तय डेसिबिल की अनुमति दी जा सकती है। सिर्फ यही दो नियम नहीं, बल्कि इसके अलावा भी और कई अलग-अलग उच्च न्यायालय के आदेश आए हैं, जिसके तहत स्पष्ट रूप से आदेश दिया गया है कि धार्मिक स्थलों या कार्यक्रम से बगैर अनुमति के लाउडस्पीकर से आवाज नहीं आनी चाहिए।

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पहले भी हो चुका है लाउडस्पीकर पर विवाद

हाल के सालों में अजान को लेकर सबसे तीखा विरोध जर्मनी में देखने को मिला था। दरअसल यहां की कोलोन सेंट्रल मस्जिद के कंस्ट्रक्शन के दौरान ही आस-पास के लोगों ने अजान को लेकर शिकायत की थी। लोगों ने कहा कि मस्जिद के निर्माण के बाद यहां अजान दी जाएगी जिससे दिक्कतें होंगी। बाद में प्रशासन ने मस्जिद बनाने की छूट इसी बात पर दी कि इसमें लाउडस्पीकर के जरिए अजान नहीं दी जाएगी। इंडोनेशिया में अजान को लेकर बड़ा विवाद सामने आया था।

सुप्रीम कोर्ट में क्यों पहुंचा था लाउडस्पीकर का मामला

कहते हैं आज से करीब 17 साल पहले लाउडस्पीकर का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था, तब इसकी वजह एक खौफनाक घटना थी। एक बच्ची के साथ रेप किया गया था और लाउडस्पीकर की तेज आवाज के कारण उसकी चीखें दब गईं। दरअसल, महाराष्ट्र में जब इस मुद्दे को उछाला गया तो कई राज्यों तक इसकी आंच पहुंच गई। वहीं आज के समय में कई शहरों से ऐसे वीडियो भी आए जहां कुछ लोगों ने मस्जिद के पास हनुमान चालीसा बजाया। यूपी में भी  लाउडस्पीकर की आवाज धीमी की गई है। अब सवाल उठने लगे हैं कि क्या बढ़ते विवाद को देखते हुए लाउडस्पीकर को बैन कर देना चाहिए।

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