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निकाय चुनाव के बाद भाजपा सशक्त तो बाकी सब पस्त…

Naresh Kumar • LAST UPDATED : June 22, 2022, 6:25 pm IST
  • कांग्रेस को सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ना महंगा पड़ा तो आप व इनेलो के लिए भी चुनावी नतीजे दुस्वप्न साबित हुए
  • भाजपा की सहयोगी जजपा भी ताकतवर

डा. रविंद्र मलिक, Haryana News। Haryana Civic Elections 2022 Result : हरियाणा में 22 जून को आए निकाय चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर से मुख्य विपक्षी दलों को आइना दिखाया है और संकेत दिया है अगर नहीं सुधरे तो आने वाले समय इससे भी खराब हो सकता है। कांग्रेस के लिए चुनावी नतीजे बड़ा झटका माने जा रहे हैं।

यूं तो सीधे सीधे मुकाबला कांग्रेस व भाजपा-जजपा में होना था लेकिन पार्टी ने चुनाव सिंबल पर नहीं लड़ने का फैसला लेकर एक तरह से पहले ही हथियार डाल दिए। पार्टी के नेताओं ने इस फैसलो गैर तार्किक और आत्मघाती कदम बताया था लेकिन पार्टी ने अपना स्टैंड नहीं बदला।

वहीं इसके अलावा चुनावी नतीजे हरियाणा में पांव जमाने की पुरजोश कोशिश में लगी आम आदमी पार्टी को भी चुनावी नतीजों से गहरा झटका लगा। वहीं इनेलो भी कुछ खास नहीं कर पाई। वहीं चुनाव के बाद भाजपा के साथ साथ सहयोगी जजपा भी मजबूत हुई है।

कांग्रेस को सिंबल पर नहीं लड़ने का नुकसान उठाना पड़ा

मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने चुनाव पार्टी सिंबल के बिना ही चुनाव लड़ने का फैसला किया था और इसका खामियाजा सीधे तौर पर पार्टी को भुगतना पड़ा है। हालांकि पार्टी के अंदर ही चुनाव सिंबल पर लड़े या नहीं, इसको लेकर काफी बवाल मचा था।

भूपेंद्र सिंह हुड्डा खेमा नहीं चाहता था कि चुनाव सिंबल पर लड़ा जाए तो वहीं पार्टी की दिग्गज नेता किरण चौधरी ने कहा था कि निकाय चुनाव प्रत्यक्ष रूप से होने हैं तो ऐसे में चुनाव सिंबल पर ही लड़ा जाना चाहिए था। इसके अलावा भी कई विधायकों का मानना था कि चुनाव पार्टी सिंबल पर लड़े जाने चाहिए। अब जो चुनावी नतीजे आए हैं वो कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है।

कांग्रेस के फैसले के चलते ही भाजपा व जजपा ने एकजुट हो चुनाव लड़ा

चुनाव के शुरू में ही भाजपा ने साफ कर दिया था कि वो अबकी बार निकाय चुनाव सहयोगी जजपा के साथ नहीं लड़ेगी। ये जजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं था।

हालांकि बाद में कांग्रेस ने फैसला किया कि वो निकाय चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं लड़ेगी। इसके बाद भाजपा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला ये कहते हुए वापस लिया कि जब कांग्रेस खुलकर मैदान में नहीं उतर रही है तो हम सहयोगी से आमने सामने क्यों हों। इसके बाद भाजपा व जजपा दोनों ने संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने का फैसला किया।

आप भी हुई धराशायी, नगर परिषद में खाता भी नहीं खोल पाई

आम आदमी पार्टी का दावा था कि वो निकाय चुनाव में सबको चित कर देगी लेकिन पार्टी के तमाम दावे हवा हवाई साबित हुए। पार्टी जहां नगर परिषद चुनाव में तो खाता भी नहीं खोल पाई तो वहीं नगर पालिका चुनाव में महज एक ही उम्मीदवार चुनाव जीत पाया।

पार्टी के लिए निकाय चुनाव दुस्वप्न साबित हुए। पार्टी के राज्यसभा सांसद सुशील व अन्य पार्टी नेता दमखम से प्रचार में जुटे थे। लेकिन पार्टी को चुनाव में मुंह की खानी पड़ी। ऐसे में नतीजों ने साफ कर दिया है कि प्रदेश में सरकार बनाने का ख्वाब देख रही आप को अभी लंबा रास्ता तय करना है।

ये चुनावी नतीजे पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के लिए भी बड़े झटके से कम नहीं हैं। वो भी निरंतर हरियाणा में सक्रिय रहे लेकिन नतीज उनकी उम्मीद के विपरित ही रहे।

इनेलो के भी चुनावी नतीजे बड़ा झटका

इनेलो पिछले 17 साल से भी ज्यादा समय से इनेलो सत्ता से दूर है। विधानसभा व संसदीय चुनाव में पार्टी को निरंतर मुंह की खानी पड़ रही है। पार्टी ने निकाय चुनाव में बड़ी जीत का दावा किया था लेकिन पार्टी की स्थिति कमोबेश पहले जैसी है।

इन चुनाव में भी पार्टी को 46 सीटों में से महज 2 पर ही जीत मिली। नगर परिषद की 18 सीट और नगर पालिका की 28 सीटों में से एक-एक सीट पर जीत मिली। पार्टी को नतीजों से खासी निराशा हाथ मिली है और सितारे गर्दिश में ही रहे। ये नतीजे पार्टी कैडर के लिए भी झटका है।

निर्दलीय जीते जरूर लेकिन सभी कांग्रेसी नहीं

वहीं दूसरी तरफ नतीजे आने के बाद ये सभी सामने आया कि कांग्रेस कुछ नेताओं ने कहा कि सभी निर्दलीय कांग्रेस पृष्ठभूमि से ही हैं। लेकिन इसको लेकर भी संदेह है। इसको लेकर भाजपा के दिग्गज नेता व शिक्षा मंत्री कंवर पाल गुज्जर ने कहा कि जितने भी निर्दलीय चुनाव जीते हैं, उनमें से कुछ एक ही कांग्रेस बैकग्राउंड से हैं।

इनमें से भी काफी भाजपा की विचारधारा वाले हैं। उनका कहना है कि अगर कांग्रेस अब इन पर भी झूठा दावा जता रही है। वहीं नतीजों से अब यह सवाल उठना लाजिमी है अब निर्दलीयों पर दावा करने वाली कांग्रेस ने खुलकर चुनाव क्यों नहीं लड़ा।

चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस मंथन व चिंतन की मुद्रा में

निकाय चुनाव के परिणाम कांग्रेस के लिए सबक देने वाले हैं। अब पार्टी का चिंतन व मंथ की मुद्रा में आना तय है। पार्टी के दिग्गजों के लिए ये नतीजे साफ संकेत हैं कि आने वाला समय पार्टी के लिए आसान नहीं है।

साल 2024 के विधानसभा चुनाव जीतने के लिए ताकत झोंकनी होगी, अन्यथा स्थिति ऐसी ही रहने वाली है। नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा व नए अध्यक्ष उदयभान का ही ये फैसला था कि चुनाव बिना सिंबल के लिए लड़े जाएं और ऐसे में अब जवाबदेही भी उनकी बनती है।

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