नई दिल्ली:– देश की राजनीति के सांचे को पूरी तरह से बदलने वाले मुलायम सिंह यादव अब इस दुनिया में नहीं रहे, 10 अक्टूबर को दिल्ली के मेदांता अस्पताल में उन्होंने आखिरी साँस ली. ये दिग्गज नेता चाहे अब इस संसार में नहीं हैं लेकिन भारत की राजनीति पर उनके कई अहम फ़ैसलों की छाप लंबे समय तक रही. जवानी के दिनों में पहलवानी का शौक़ रखने वाले मुलायम सिंह ने जब राजनीति में अपना कदम रखा तो कई बड़े उतार चढ़ाव आने लगे लेकिन इन सबके बाद भी उनका कद लगातार बढ़ता गया. आज हम आपको उनके कुछ बड़े फैसलों को बताने के लिए हाज़िर हुए हैं.
मुलायम सिंह यादव अल्पसंख्यकों के दिलों पर भी उसी तरह राज करते जिस तरह से देश की बहुसंख्यक जनता उन्हें पसंद करती थी.साल 1992 में मुलायम सिंह ने जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी के रूप में एक अलग पार्टी बनाई.और अलग पार्टी बनाने के बाद भी वो जनता के दिल में उसी तरह लोकप्रिय रहे और इसका फायदा भी उन्हें हुआ,नई पार्टी का गठन उनके लिए काफी मददगार भी साबित हुआ, वे तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे और केंद्र की राजनीति में भी अहम भूमिका निभाते रहे. अब बात करेंगे उनके दूसरे फैसले की जिसकी वजह से उन्हें विरोधी मुल्ला मुसलमान कहते थे. साल 2008 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार थी उस दौरान यूपीए की सरकार अमरीका के साथ परमाणु करार को लेकर बहुत संकट में आ गई थी, और इस संकट के समय में वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया था.और ठीक उसी समय मुलायम सिंह ने मनमोहन सरकार को बाहर से समर्थन देकर सरकार बचाई, इस दौरान पार्टी के कुछ नेता मुलायम सिंह यादव से नाराज़ भी हुए.
अब हम आपको मुलायम सिंह के उस फैसले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो उन्होंने देश के रक्षा मंत्री रहते हुए लिया था और इसी फैसले की वजह से शहीद जवानों का पार्थिव शरीर उनके घर तक पहुंचता है.मुलायम सिंह 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक देश के रक्षा मंत्री रहे, और इसी दौरान उन्होंने जो फैसला किया था आज उसका फायदा हर शहीद जवान के परिवार को होता है।
आपको बता दें कि देश की आजादी के बाद कई सालों तक जब भी कोई जवान देश की रक्षा करते हुए शहीद हो जाता था, तो उनके पार्थिव शरीर की जगह सिर्फ जवान की टोपी और बेल्ट को उसके घर पहुंचाया जाता था. लेकिन मुलायम सिंह ने अपने फैसले से इस रीति को बदल दिया और ये कानून बनाया कि अगर कोई भी जवान भारत माता की रक्षा करते हुए शहीद होता है तो उसका पार्थिव शरीर राजकीय सम्मान के साथ उसके घर पर पहुंचाया जाए. इसके अलावा मुलायम के रक्षा मंत्री रहते ही भारत ने सुखोई-30 लड़ाकू विमान का सौदा किया था।
अब हम बात करेंगे उनके उस फैसले की जिसकी वजह से मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव के रिश्ते में काफी दरारें आयी,वजह ये थी कि शिवपाल खुद को मुलायम सिंह के बाद मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. साल 2012 तक उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में 403 में से 226 सीटें जीतकर मुलायम सिंह ने अपने आलोचकों को एक बार फिर जवाब दिया था, 2012 के पहले मुलायम सिंह तीन बार मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल चुके थे, ऐसे में सबकी नज़र एक बार फिर इसी पर थी की इस बार फिर से सत्ता की कुर्सी पर मुलायम सिंह बैठेंगे क्योंकि प्रदेश की जनता भी यही चाहती थी, लेकिन उन्होंने अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाकर समाजवादी पार्टी की राजनीति के भविष्य को एक नई दशा और दिशा देने की पहल कर दी थी.
जब मुलायम सिंह यादव ने ये फैसला लिया तो मानों शिवपाल के पैरों तले जमीन खिसक गई हो, वो यही सोच रहे थे कि इस बार उत्तर प्रदेश की शीर्ष कुर्सी पर वो विराजमान होने वाले हैं लेकिन भाई की जगह मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे को चुना। मुलायम सिंह के राजनैतिक जीवन के हमसफ़र भाई शिवपाल नाखुश हुए और यही से सपा में दरारों की शुरुआत हो गई. ये थे वो बड़े फैसले जिन्हे मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनैतिक जीवन में लिया इसके अलावा उनके कई और भी अहम् फैसले रहें जिसने देश हित में बड़ा योगदान दिया।
सैफई में मुलायम सिंह यादव का 11 अक्टूबर को अंतिम संस्कार हुआ, पूरा परिवार भावुक था. छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव (Shivpal Singh Yadav) ने बुधवार को मीडियाकर्मियों से बात की.नाम आँखों से उन्होंने अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव से अपने संबंधों को लेकर कहा कि वह जीवन भर नेताजी की कही बातों को ही मानते रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा, नेताजी ने मुझे पढ़ाया भी है. मुझे साइकिल पर बैठाकर स्कूल भी ले जाया करते थे.और फिर जब मैंने साइकिल चलानी सीख ली तो मैं भी नेताजी को बैठा कर ले जाया करता था. शिवपाल सिंह ने कहा, हर मोर्चे पर, हर मौके पर हमने अभी तक जो भी फैसले लिए हैं, वो सारे फैसले नेताजी के कहने पर ही लिए हैं. हमने कभी भी नेताजी की किसी बात को नहीं टाला है. कोई भी बात हो किसी भी तरह की बात हो, मैंने नहीं टाला है.
आज मुलायम सिंह यादव इस दुनिया में नहीं है लेकिन लोगों के दिलों में उनकी छवि आज भी उतनी ही बेहतरीन है जितनी उनके जीवित रहने पर थी.